1. चतुर्मुखी सनातन धर्म : पहला धर्म : मातृत्व धर्म –
जिस ईश्वर या परमेश्वर या भगवान या खुदा की हम कुछ पल से लेकर कुछ घंटे तक पूजा वंदना या इबादत करते हैं, उसे ही हम अपना धर्म मान लेते हैं. यह हमारे आस्था के केंद्र परमपिता परमेश्वर के प्रति हमारी श्रद्धा तथा भक्ति की ही अभिव्यक्ति होती है. इस तरह से मात्र कुछ मिनिट से लेकर एकाध घंटे के लिए हम हमारे आराध्य परमेश्वर की आराधना में डूब कर उन्हें अपनी श्रद्धा तथा भक्ति के सुमन चढ़ाते हैं. आपने कभी सोचा है कि इस तरह मात्र अधिक से अधिक एक घंटे से ज्यादा यानी कि हमारे प्रति दिन के मात्र 5% समय में की गयी भगवान की पूजा से आप धार्मिक कैसे कहला सकते हैं?
क्या आप अपने प्रति दिन के बाकी के 23 घंटे या 95 % समय में घर-परिवार की सुरक्षा, ममत्व, उनका भरण-पोषण, आजीविका, व्यापार, राष्ट्र प्रेम, लोक हित आदि के सभी कार्यों को करते समय खुद को धार्मिक मानते हैं?
क्या आप अपने प्रतिदिन के बाकी के 95% समय में धार्मिक रहते हैं?
सच्चाई यह है कि हम सभी तो हर समय संसार के अपने सभी कार्यों को करते समय भी धार्मिक ही रहते हैं, क्योकि हम तो हर समय अपने सांसारिक कर्तव्यों का ही पालन कर रहे हैं. जिसका पालन हम हर पल, हर दम यानी कि प्रति दिन 24 घंटे करते रहते हैं. हमारा धर्म शाश्वत, सनातन, अजर, अमर तथा सुखदायक तभी कहला सकता है, जब वह हमारे हर जन्म में हर समय, हर पल हमारे ही साथ रहता हो. हमारी पशु-पक्षियों की योनी या जन्म में भी हमारा यह सनातन धर्म अपने अस्तित्व को बनाते रखता है. अतः हमारे किसी भी जन्म में, किसी भी योनी में, किसी भी अवस्था में हमारा साथ न छोड़े, वह ही हमारा सच्चा धर्म कहला सकता है.
अहो, धर्म तो धृ धातु से बना है जिसका अर्थ होता है – धारण करना.
अतः जो आप हो, ऐसे अपने चतुर्मुखी सनातन धर्म का प्रतिपादन करने वाले शाश्वत चैतन्य स्वरुप आत्मदेव को जानना, मानना और धारण करना ही सनातन धर्म कहलाता है. अतः यह सांसारिक कर्तव्यों का पालन ही वास्तव में सनातन धर्म कहलाता है.
यही हमारा सच्चा सनातन धर्म कहलाता है.
यह सनातन धर्म चतुर्मुखी या चार अंगो से विभूषित होता है जो कि इस प्रकार के होते हैं –
1. मातृत्व धर्म
2. राष्ट्र धर्म
3. विश्व धर्म
4. आत्म धर्म
अनादिकाल से लेकर आज तक के अनन्त वर्षो में ऐसे अपने सनातन धर्म को न मानने के कारण ही आपने –
a) चौरासी लाख योनियों में बारम्बार भ्रमण किया है ।
b) जितने भी प्राणी दिख रहे हैं उन सभी जीव–राशियो में प्रत्येक मनुष्य ने अनन्त बार भ्रमण किया है ।
c) जिस–जिस जगह पर आप जाते हो, वहां पर भी पूर्व में आपने अनन्त बार जन्म–मरण किया है ।
d) इस तरह जो कुछ भी दिखता है, वे सब भूमिकायें आपने अनन्त बार निबाही हैं.
e) इन सब भूमिकाओं में आपके आत्मदेव के ही फोटोग्राफ हैं,
f) अतः वे सब मिलकर आपके आत्मदेव का ही एलबम बनाते हैं.
आपके चैतन्य स्वभाव वाले चतुर्मुखी धर्म के पहले अंग मातृत्व धर्म पर अब हम चर्चा करते हैं –
1. मातृत्व धर्म –
मेरी जन्मदायनी माँ का मातृत्व धर्म ही मेरा पहला धर्म होता है. मेरी माँ ही मुझे करुणामय ममत्व प्रदान कर अत्यंत वात्सल्य भाव से मेरा पोषण कर मुझे पोषण देती है. मेरी माँ के ममत्व और वात्सल्य के संस्कार मुझे बताते हैं कि मेरे इस मातृत्व धर्म का पालन करने के लिए मुझे भी अपने परिवार का अच्छी तरह से भरण-पोषण करना चाहिए. अतः मेरा पहला धर्म तो मातृत्व धर्म या वात्सल्य धर्म ही है. साथ ही मेरी माँ के बताये ममत्व और वात्सल्य भाव के संस्कार को गृहण कर मुझे अपने आसपास के सभी लोगो को अपने परिवार का अंग मानकर उनकी सहायता करना ही मेरे मातृत्व धर्म की पहचान है.
मातृत्व धर्म ही एक ऐसा धर्म है जिससे प्रत्येक व्यक्ति या प्राणी का सबसे पहले परिचय होता है. मातृत्व धर्म ही एक ऐसा धर्म है जो अनादिकाल से है, अभी भी है और आगे आने वाले अनंत काल में भी रहेगा. मातृत्व धर्म ही एक ऐसा धर्म है जो देश, समय, समाज, सम्प्रदाय, आस्था, काल, पुनर्जन्म आदि की सभी सीमाओं के पार जाकर मनुष्यों के साथ-साथ पशु-पक्षी आदि में भी पाया जाता है. अतः यह मातृत्व धर्म शाश्वत है, सनातन है, अजर है, अमर है, सुखदायक है. अगर आप भी इस मातृत्व धर्म का पालन कर बेबस, बीमार, कमजोर, लाचार और दुखी लोगो को अपने परिवार का अंग मानकर उनकी मदद करते हैं, तो आप भी मातृत्व धर्म का पालन करते है.
आप किसी भी जाति, सम्प्रदाय या आस्था को मानने वाले हों, फिर भी आप मातृत्व धर्मी हैं और अनंत काल तक रहेंगे. आपकी आस्था के आपके वर्तमान के धर्म तो इस जन्म के साथ ही ख़त्म हो जायेंगे. अतः आप उनका तो पालन करें ही, साथ ही आपके साथ हर समय रहने वाले शाश्वत, सनातन, अजर, अमर, सुखदायक चतुर्मुखी धर्मों का भी पालन करें, ताकि आप भी शाश्वत, सनातन, अजर, अमर होकर अक्षय अनंत सुख को पा सकें. इस संसार के समस्त प्राणियों को कलियुग या पंचम काल के अंत तक स्वयं के शुद्ध आत्म-तत्व या चैतन्यदेव या चैतन्य सम्राट को प्रतिपादित करने वाले चतुर्मुखी सनातन धर्म का ज्ञान मिलता रहे,
चतुर्मुखी सनातन धर्म का पालन करने की प्रेरणा मिलती रहे, इसके लिए सम्पूर्ण विश्व के हर कोने में समवशरण सेवा मंदिर बनाने की हमारी योजना है. हमारे प्रस्तावित एक हजार आठ समवशरण सेवा मंदिरों में आपको इस चतुर्मुखी सनातन आत्म धर्म का इस युग के अंत तक सतत लाभ मिलता रहेगा. अतः अब आप भी खुद को चतुर्मुखी सनातन धर्मी माने तथा इसके चारों अंग जैसे कि मातृत्व धारण, राष्ट्र धर्म, विश्व धर्म तथा आत्म धर्म का स्वरुप जानकार इस चतुर्मुखी सनातन धर्म का पालन करें. फिर निश्चित ही आप अक्षय अनंत सुख की प्राप्ति कर मोक्ष महल में सदा के लिए निवास करेंगे.
2. चतुर्मुखी सनातन धर्म : दूसरा अंग : राष्ट्र धर्म
हमारा दूसरा धर्म हमारी राष्ट्र माँ या भारत माँ का राष्ट्र धर्म होता है. राष्ट्र धर्म भी शाश्वत है, सनातन है, अजर है, अमर है, सुखदायक है.
हमारी राष्ट्र माँ या भारत माँ हमारे देश के प्रत्येक नागरिक को अपना पुत्र मानकर उसे आश्रय, अभय, सुरक्षा, आत्मनिर्भरता और रोजगार देकर हमारा जीवनयापन करती है. यही हमारा दूसरा धर्म यानी कि राष्ट्र धर्म कहलाता है.
अतः हमे चाहिए कि हम हमारे देश के प्रत्येक नागरिक को –
1. प्रत्येक नागरिक को इस शश्य श्यामल भारत भूमि का देशवासी मानें
2. प्रत्येक नागरिक को अपने परिवार के लालन-पालन तथा भरण-पोषण के सभी अवसर प्रदान करें.
3. प्रत्येक नागरिक को रोजगार या नौकरी के समान अवसर उपलब्ध करवाएं.
4. सभी देशवासियों के प्रति आपसी विश्वास, सामंजस्य तथा सम्मान की भावना रखें
5. प्रत्येक नागरिक को अभय, आश्रय, सुरक्षा, आत्मनिर्भरता और आजीविका दिलवा कर इस राष्ट्र धर्म का पालन करे.
यह राष्ट्र धर्म ही एक ऐसा धर्म है जो अनादिकाल से है, अभी भी है और आगे आने वाले अनंत काल में भी रहेगा. राष्ट्र धर्म एक ऐसा धर्म है जो अलग-अलग देशों में विभिन्न रीति-रिवाज तथा आस्थाओं के साथ भी पाया जाता है. साथ ही यह राष्ट्र धर्म देश, समय, समाज, सम्प्रदाय, आस्था, काल, पुनर्जन्म आदि की सभी सीमाओं के पार जाकर मनुष्यों के साथ-साथ पशु-पक्षी, चींटी आदि प्राणियों में भी पाया जाता है. अतः यह राष्ट्र धर्म शाश्वत है, सनातन है, अजर है, अमर है, सुखदायक है. अतः आप किसी भी जाति, सम्प्रदाय या आस्था को मानने वाले हों, फिर भी आप राष्ट्र धर्मी हैं और अनंत काल तक रहेंगे.
अगर आप भी इस राष्ट्र धर्म का पालन कर बेबस, बीमार, कमजोर, लाचार और दुखी लोगो को अपने देश का नागरिक मानकर उनकी मदद करते हैं, तो आप भी इस राष्ट्र धर्म का पालन करते है. आपकी आस्था के आपके वर्तमान के धर्म तो इस जन्म के साथ ही ख़त्म हो जायेंगे. अतः आप उनका तो पालन करें ही, साथ ही आपके साथ हर समय रहने वाले शाश्वत, सनातन, अजर, अमर, सुखदायक चतुर्मुखी धर्मों का भी पालन करें, ताकि आप भी शाश्वत, सनातन, अजर, अमर होकर अक्षय अनंत सुख को पा सकें. इस संसार के समस्त प्राणियों को कलियुग या पंचम काल के अंत तक स्वयं के शुद्ध आत्म-तत्व या चैतन्यदेव या चैतन्य सम्राट को प्रतिपादित करने वाले चतुर्मुखी सनातन धर्म का ज्ञान मिलता रहे,
चतुर्मुखी सनातन धर्म का पालन करने की प्रेरणा मिलती रहे, इसके लिए सम्पूर्ण विश्व के हर कोने में समवशरण सेवा मंदिर बनाने की हमारी योजना है. हमारे प्रस्तावित एक हजार आठ समवशरण सेवा मंदिरों में आपको इस चतुर्मुखी सनातन आत्म धर्म का इस युग के अंत तक सतत लाभ मिलता रहेगा. अतः अब आप भी खुद को चतुर्मुखी सनातन धर्मी माने तथा इसके चारों अंग जैसे कि मातृत्व धारण, राष्ट्र धर्म, विश्व धर्म तथा आत्म धर्म का स्वरुप जानकार इस चतुर्मुखी सनातन धर्म का पालन करें. फिर निश्चित ही आप अक्षय अनंत सुख की प्राप्ति कर मोक्ष महल में सदा के लिए निवास करेंगे.
3. चतुर्मुखी सनातन धर्म : तीसरा अंग : विश्व धर्म –
आपका धर्म तभी शाश्वत, सनातन, अजर, अमर, सुखदायक कहला सकता है, जब आपके हर जन्म में वह धर्म आपके साथ रहे, आपका कभी भी न साथ छोड़े. सनातन धर्म के तीसरे सोपान में हम हमारी माँ वसुंधरा या पृथ्वी माँ के विश्व धर्म पर चर्चा करते हैं. माँ वसुंधरा का प्राकृतिक धर्म ही हमारा विश्व धर्म कहलाता है. माँ वसुंधरा का धर्म हमारा नैसर्गिक गुण, शक्ति या स्वभाव वाला होता है. इस संसार के किसी भी देश के किसी भी कोने या जगह पर आप जायेंगे, तो आपको हर जगह पर, पग-पग में माँ वसुंधरा के विश्व धर्म से आपका सुखद परिचय होता रहेगा.इस तरह हर देश, हर प्रान्त, हर समाज और हर सम्प्रदाय का नागरिक माँ वसुंधरा के इस विश्व धर्म का पालन करने वाला होता है.
आइये अब हम माँ वसुंधरा के इस विश्व धर्म पर विस्तार से चर्चा करते हैं –
माँ वसुंधरा अपनी सभी संतानों को पोषण, आश्रय, विश्राम और ममत्व प्रदान करती है. माँ वसुंधरा ही हमारे इस शरीर का हर तरह से रक्षण, पोषण कर हमारा जीवन-चक्र चलाती है. माँ वसुंधरा अपनी सभी महान शक्तियां जैसे कि सूर्य, चन्द्रमा, पृथ्वी, पवन, नदियाँ, समुद्र, वृक्ष आदि के द्वारा हम सभी का निःस्वार्थ भाव से लालन-पालन और पोषण करती है. माँ वसुंधरा के आँचल की छाँव से छन कर आने वाली सूर्य की किरणों से ही सभी प्राणियों को रोशनी, प्रकाश, उर्जा और पोषण मिलता है. माँ वसुंधरा के आश्रय में ही चन्द्रमा सभी को शीतल किरणों से प्रफुल्लित करता है.
माँ वसुंधरा की मधुर लोरी गुनगुनाते हुए पवन या हवा सभी को प्राणदायक वायु प्रदान करती है. हिटलर ने लाखों लोगो को मारा, फिर भी वसुंधरा माँ ने उसको आक्सीजन देना बंद नहीं किया था. माँ वसुंधरा के आँचल में सितारों की तरह जड़े सभी पेड़-पौधे प्राणघातक वायु को गृहण कर जीवनदायक आक्सीजन को छोड़ते हैं और पत्थर मारने पर भी मधुर फल देते हैं. माँ वसुंधरा की छत्र-छाया में सभी सागर नीलकंठ की भांति इस संसार की सभी तरह की गन्दगी को गृहण कर घनघोर मेघों की रचना कर अमृत जल की बारिश करवाते हैं. माँ वसुंधरा ही सभी नदियों में जल, खेतों में हरियाली तथा भूखे-प्यासे को अन्न-जल देती हैं. इस तरह से माँ वसुंधरा अपने आँचल की छाया में पात्र-अपात्र की चिंता किये बिना सभी प्राणियों को निस्वार्थ भाव से शक्ति, स्वास्थ्य, सुरक्षा तथा संबल प्रदान करती रहती है.
माँ वसुंधरा की तरह ही उसकी संतानों या सभी प्राणियों की सेवा करना ही हमारा सच्चा सनातन विश्व धर्म कहलाता है. अतः दीन-दुखी, लाचार, बीमार, परेशान लोगो की मदद कर उनमे आशा का संचार करना ही विश्व धर्म कहलाता है. आपका विश्व धर्म यह ही है कि आप भी निस्वार्थ भाव से अच्छे-बुरे की चिंता छोड़कर अपना तन-मन-धन लगाकर वसुंधरा माँ की सभी संतानों की मदद करें, उन पर हमेशा उपकार करें,
अतः माँ वसुंधरा की सभी संतानों की सेवा ही सच्चा सनातन विश्व धर्म है.आप भी माँ वसुंधरा के सनातन विश्व धर्म का पालन कर सच्चे धर्मात्मा कहला सकेंगे. फिर आप भी इन महान शक्तियों के समतुल्य होकर पामर से परमात्मा बन सकेंगे. अतः आप सभी को अब साक्षी भाव से, वीतरागी भाव से इस सनातन विश्व धर्म को जानकर अब हमेशा इसका पालन करना चाहिये. तभी आप सभी धर्मों, सम्प्रदाय तथा जाति के विरोधाभास को दूर कर सनातन विश्व धर्म के अनुयायी बन सकते हैं. अगर आप भी इस सनातन विश्व धर्म के अनुयायी बन बेबस, बीमार, कमजोर, लाचार और दुखी लोगो को माँ वसुंधरा की संतान मानकर उनकी मदद करते हैं, तो आप भी इस सनातन विश्व धर्म का पालन करते है.
आपकी आस्था के आपके वर्तमान धर्म तो इस जन्म के साथ ही ख़त्म हो जायेंगे. अतः आप उनका तो पालन करें ही, साथ ही आपके साथ हर समय रहने वाले शाश्वत, सनातन, अजर, अमर, सुखदायक चतुर्मुखी धर्मों का भी पालन करें, ताकि आप भी शाश्वत, सनातन, अजर, अमर होकर अक्षय अनंत सुख को पा सकें. इस संसार के समस्त प्राणियों को कलियुग या पंचम काल के अंत तक स्वयं के शुद्ध आत्म-तत्व या चैतन्यदेव या चैतन्य सम्राट को प्रतिपादित करने वाले चतुर्मुखी सनातन धर्म का ज्ञान मिलता रहे, चतुर्मुखी सनातन धर्म का पालन करने की प्रेरणा मिलती रहे,
इसके लिए सम्पूर्ण विश्व के हर कोने में समवशरण सेवा मंदिर बनाने की हमारी योजना है. हमारे प्रस्तावित एक हजार आठ समवशरण सेवा मंदिरों में आपको इस चतुर्मुखी सनातन आत्म धर्म का इस युग के अंत तक सतत लाभ मिलता रहेगा. अतः अब आप भी खुद को चतुर्मुखी सनातन धर्मी माने तथा इसके चारों अंग जैसे कि मातृत्व धारण, राष्ट्र धर्म, विश्व धर्म तथा आत्म धर्म का स्वरुप जानकार इस चतुर्मुखी सनातन धर्म का पालन करें. फिर निश्चित ही आप अक्षय अनंत सुख की प्राप्ति कर मोक्ष महल में सदा के लिए निवास करेंगे.
4. चतुर्मुखी सनातन धर्म : चौथा अंग : आत्म धर्म –
मेरे द्वारा पहले बताये तीनो धर्म जैसे कि मातृत्व धर्म, राष्ट्र धर्म तथा विश्व धर्म तो हमारे इस जन्म के सच्चे धर्म होते हैं. हम उनका हर समय नियमित रूप से पालन करते ही रहते हैं. अब हम हमारे आगे आने वाले अनंत योगों में भी हमारा कभी भी साथ न छोड़ने वाले शाश्वत, सनातन, अजर, अमर, सनातन धर्म के चौथे अंग, प्रबल चैतन्यमयी शक्ति से भरपूर आत्म धर्म पर चर्चा करते हैं. हमारा आत्म धर्म ही वास्तव में हमारा सच्चा शाश्वत, सनातन, अजर, अमर, सुखदायक धर्म है. इस आत्म धर्म की चैतन्य शक्ति ही हमे समय के अनंत प्रवाह या काल-चक्र में कभी भी मरने नहीं देती है.
हमारी इस चैतन्य शक्ति से हमारे अनंत जन्म लेने पर भी हमारे चैतन्य गुणों में से कोई भी गुण हमारा कभी भी साथ नहीं छोड़ता है. चौरासी लाख योनियों के हर भ्रमण में, हर जन्म में हमारे चैतन्यदेव के कारण ही हम अजर-अमर रहते हैं और आगे भी अजर-अमर ही रहेंगे. यही हमारा चतुर्मुखी सनातन धर्म कहलाता है. सनातन धर्म का अर्थ ही यह होता है कि वह किसी भी काल, परिस्थिति, योनी या जन्म में हमारा साथ न छोड़े. आगे आने वाले अनंत युगों तक भी हमारा साथ न छोड़े. अतः यह चैतन्य-स्वभाव ही प्रत्येक प्राणी का नैसर्गिक गुण होता है, अनुपम शक्ति है, निर्मल स्वभाव है, अक्षय अनंत सुख सरोवर है. इसलिए हम इसे ही सनातन धर्म कहते हैं. यह सनातन धर्म ही विज्ञान की हर कसौटी पर खरा उतरता है. हर युग, हर काल में यह सनातन धर्म अक्षुण्य रहता है. कभी भी नष्ट नहीं होता है.
जैन धर्म में इस सनातन चैतन्यमयी आत्म धर्म को –
1. चैतन्य प्रभो बताया है,
2. कारण परमात्मा बताया है,
3. परम पारिणामिक प्रभो बताया है,
4. आत्म स्वभाव बताया है,
5. सहजानंदी बताया है,
6. शुद्ध स्वरूपी बताया है,
7. अविनाशी बताया है,
8. अजर-अमर बताया है.
9. ईश्वर बताया है,
10. जगदीश्वर बताया है.
11. त्रिलोकीनाथ बताया है,
12. सर्वज्ञ बताया है.
इस आत्म धर्म को अष्टावक्र गीता में भी जगह-जगह पर चैतन्य सम्राट बताया गया है. अष्टावक्र गीता के प्रकरण 6, सूत्र 1,2 भावार्थ में भी समझाया गया है कि –
1. आपका निज चैतन्यदेव तो आकाश के समान असीम है,
2. विशाल है,
3. सीमा रहित है,
4. लेकिन यह संसार तुच्छ घड़े की भांति प्रकृतिजन्य है, सूक्ष्म है, असार है.
5. यह आत्मा समुद्र के समान विशाल है
6. लेकिन यह संसार तरंगों के समान विनाशीक है.
7. सिर्फ मेरा आत्मदेव ही एक है,
8. यही एकमात्र सत्य है;
9. जो दर्शाता है कि जहाँ न कुछ पाने को है;
10. न छोड़ने को है;
11. न राग है,
12. न विराग है;
13. न आसक्ति है,
14. न विरक्ति है;
15. न संसार है,
16. न मुक्ति है;
17. ऐसा मैं हूँ.
18. अब मुझ स्थितप्रज्ञ (ज्ञाता-द्रष्टा) ज्ञानी को इस संसार में किसका त्याग है,
19. किसका गृहण है,
20. किसका लय है,
21. किसका विलय है?
22. मैं आकाश के समान असीम,
23. समुद्र के समान विशाल हूँ;
24. लेकिन यह संसार तरंगों के समान तुच्छ है.
25. अतः अब आप भी साक्षी या वीतराग भाव से इस संसार को तुच्छ मानकर खुद के आत्मदेव को अपना चैतन्य-सम्राट मान लें.
इस तरह से आपके खुद के चैतन्यमयी आत्मदेव की महिमा अद्भुत है, अपार है, अकल्पनीय है, बेजोड़ है और इस चैतन्यदेव के आत्म धर्म की चर्चा ही सर्वोत्कृष्ट श्रेणी की चर्चा है. अतः दीन-दुखी, लाचार, बीमार, परेशान लोगो की मदद कर सभी प्राणियों को उनकी भूंख-प्यास, बेबसी, लाचारी, परेशानी को दूर कर उनमे आशा का संचार करना ही सच्चा सनातन आत्म धर्म कहलाता है. उनकी सेवा करना, उनको पामर से परमात्मा बनाना ही सच्चा सनातन आत्म धर्म कहलाता है. किसी भी मनुष्य के अच्छे-बुरे कर्मों को देखे बिना ही सिर्फ निस्वार्थ भाव से, साक्षी भाव से, वीतरागी भाव से अपना तन-मन-धन लगाकर सभी प्राणियों को भक्त से भगवान बनने का मार्ग बताना ही सच्चा सनातन आत्म धर्म कहलाता है
अपने पराये का भेद मिटाकर सभी लोगो की मदद करना, उन पर हमेशा करुणा करना, उनकी सेवा करना ही सच्चा सनातन आत्म धर्म कहलाता है अगर आप भी सच्चे सनातन धर्मात्मा कहलाना चाहते हैं, तो आप सभी प्राणियों को परमात्मा माने, फिर आप भी स्वतः ही परमात्मा बन जायेंगे. फिर आप भी स्वतः ही आज तक हुए समस्त सिद्ध भगवंतों के समतुल्य होकर अधम से ईश्वर बन सकेंगे. अतः आप सभी को अब साक्षी भाव से, वीतरागी भाव से इस सनातन आत्म धर्म को जानकर अब हमेशा इसका पालन करना चाहिये. तभी आप सभी धर्मों, सम्प्रदाय तथा जाति के विरोधाभास को दूर कर सनातन आत्म धर्म के अनुयायी बन सकते हैं. अगर आप भी इस सनातन आत्म धर्म के अनुयायी बन बेबस, बीमार, कमजोर, लाचार और दुखी लोगो को माँ वसुंधरा की संतान मानकर उनकी मदद करते हैं, तो आप भी इस सनातन विश्व धर्म का पालन करते है. फिर आप भी सनातन विश्व धर्मी कहला सकते हैं.
आप जानते ही हैं कि जाति, सम्प्रदाय या आस्था कहलाने वाले आपके वर्तमान के धर्म तो इस जन्म के साथ ही ख़त्म हो जाते हैं. अतः आप अपने आस्था के धर्म का पालन तो करें ही, साथ ही मातृत्व धर्म, राष्ट्र धर्म, विश्व धर्म तथा हर जन्म में आपके साथ रहने वाले चैतन्यमयी आत्म धर्म के समान शाश्वत, सनातन, अजर, अमर, सुखदायक चतुर्मुखी सनातन धर्म का भी पालन करें. ताकि आप भी शाश्वत, सनातन, अजर, अमर होकर अक्षय अनंत सुख को पा सकें, भक्त से भगवान बन सकें. आशा है अब आप भी अपने इस सनातन धर्म को पहचान कर उसका पालन करेंगे.
इस सनातन धर्म को अपनाने से आतंकवाद पर भी अंकुश लग सकता है. इस संसार के समस्त प्राणियों को कलियुग या पंचम काल के अंत तक स्वयं के शुद्ध आत्म-तत्व या चैतन्यदेव या चैतन्य सम्राट को प्रतिपादित करने वाले चतुर्मुखी सनातन धर्म का ज्ञान मिलता रहे, चतुर्मुखी सनातन धर्म का पालन करने की प्रेरणा मिलती रहे, इसके लिए सम्पूर्ण विश्व के हर कोने में समवशरण सेवा मंदिर बनाने की हमारी योजना है. हमारे प्रस्तावित एक हजार आठ समवशरण सेवा मंदिरों में आपको इस चतुर्मुखी सनातन आत्म धर्म का इस युग के अंत तक सतत लाभ मिलता रहेगा. अतः अब आप भी खुद को चतुर्मुखी सनातन धर्मी माने तथा इसके चारों अंग जैसे कि मातृत्व धारण, राष्ट्र धर्म, विश्व धर्म तथा आत्म धर्म का स्वरुप जानकार इस चतुर्मुखी सनातन धर्म का पालन करें. फिर निश्चित ही आप अक्षय अनंत सुख को प्राप्त कर मोक्ष महल में सदा के लिए निवास करेंगे.
किसी भी तरह की बीमारी, परेशानी, लाचारी, पीड़ा या जिज्ञासा के उचित निवारण के लिए संपर्क करें –
डॉ. स्वतंत्र जैन
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