सूरज प्रतिदिन रोशनी और उर्जा देता है और समस्त जीवात्माओं, सभी प्राणियों को उससे पोषण मिलता है। इसी तरह चन्द्रमा की शीतलता भी हर समय बिना किसी भेद-भाव के सभी को उपलब्ध रहती है. बारिश का अमृत-जल भी सबको समान भाव से जीवन देता है. फूल का खिलना, फल का लगना भी समान रूप से हर व्यक्ति की मुस्कान खिला देता है. सभी तरह की फसल भी सबके पोषण के लिए ही होती है. इसी तरह ऋतु परिवर्तन आदि संसार की जो भी क्रियाएँ हो रही है, वे सभी सहजभाव से वीतरागता से, साक्षी भाव से सबके कल्याण के लिए ही हो रही है। इस संसार में अभी आपको जो कुछ भी दिख रहा है, वह किसी व्यक्ति विशेष के लिये नहीं हो रहा हैं,
बल्कि समस्त प्राणी मात्र के कल्याण के लिए हो रहा है। इस तरह इस संसार में होने वाले और दिखने वाले सभी कार्य तो निःस्वार्थ भाव या साक्षी भाव या वीतरागता से ही किये जाते हैं. प्रत्येक महापुरुष भी संसार के सभी व्यक्तियों के कल्याण के लिए कार्य करते रहते हैं. वे किसी भी व्यक्ति विशेष, जाति विशेष या सम्प्रदाय विशेष के लोगो के भले के लिए कार्य नहीं करते हैं.
वे तो हर समय निर्विकार भाव से, निःस्वार्थ भाव से हर समय लोगो का भला करते रहते हैं. कोई भी महापुरुष सिर्फ अपने को मानने या पूजने वाले अनुयायी या भक्तों का ही भला नहीं करते हैं, अपितु वे तो साक्षी भाव से सभी व्यक्तियों के भले के लिए ही कार्य करते रहते हैं.
हमारे सभी परमेश्वर या भगवान या खुदा या ईश्वर भी हमेशा प्राणी मात्र के कल्याण की, हित की, भले की अमृत-बारिश करते रहते हैं और वह सभी जगह समान रूप से वीतराग भाव से सभी प्राणियों के लिए ही होती है। इसी तरह सभी महापुरुष या सद्गुरू भी सहजपने से अत्यन्त करूणा धारण कर समस्त जीवों के कल्याण के लिये अपनी अमृत वर्षा करते ही रहते हैं।
इस तरह से लोक कल्याण में सेवा या दान के चार प्रकार होते हैं –
1. औषधि दान या औषधि सेवा
2. आहार दान या आहार सेवा
3. अभय दान या अभय सेवा
4. ज्ञान दान या ज्ञान सेवा
यह चतुर्मुखी दान-सेवा-भाव ही समवशरण का सार होता है.
मुक्तियाँ विश्व शांति, सुख, सम्रद्धि ट्रस्ट द्वारा विश्व के हर देश में लगभग 100 एकड़ के क्षेत्र में नागरिकों को हो रही सभी तकलीफों, दुखों से मुक्त कराकर भक्त से भगवान बनने का मार्ग बताने वाले, शुद्ध वीतरागी चैतन्य प्रभो बनने का पथ प्रशस्त करने वाले अत्यंत विशाल चैतन्यप्रभु तथा तीर्थंकर भगवंतों के प्रतीक स्वरुप एक हजार आठ समवशरण सेवा मंदिर संस्थान की स्थापना की परियोजना शुरू की जा रही है.
हमारे किसी भी इतिहास या पुराणों में सम्पूर्ण विश्व में एक हजार आठ समवशरण सेवा मंदिर संस्थान बनाने सरीखी कोई भी विशाल परियोजना का उल्लेख नहीं है.